रेगिस्तान का रांझणा

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“कहानी इक रेगिस्तानी रांझे की जो लदी है असंख्य उम्मीदों, अरमानों, सपनों, ख़्वाहिशों और आशाओं से, एक ऐसी कहानी जो चलती है अल्फ़ाज़ों, ज़ज़्बातों और अहसासों की अंगड़ाई से और अंत में इसी रेगिस्तान की मिट्टी में मिलकर रह जाती है खुद में समेटे इक सवाल कि-आखिर यह आत्महत्या क्यों? जबकि अंत में पछतावे के अलावा कुछ नहीं रहता, फिर यह नादानी क्यों? “

  • Paperback: – 197 Pages
  • Edition:- 1st
  • PublisherNovel Nuggets Publishers 
  • LanguageHindi
  • ISBN: 978-93-91178-81-9

 

 

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Description

Novel Description

 

गर्मियों के महिनों मे जहाँ धरती अंगारे उगलती है तथा जहाँ गर्म हवाएँ अहसास दिलाती है, हवा संग उड़ती आग का, अनगिनत सपनों से भरा छोटा सा शहर, यह कहानी है रेगिस्तानी शहर बाड़मेर के एक परवाने शख्स रेगिस्तान के रांझणे कबीर की, जिसकी शुरुआत होती है एक छोटी-सी चाहत के साथ और वही चाहत समय के साथ करवट लेते-लेते एक बड़ी जिद्द और जीने का मकसद बन जाती है। यह कहानी लदी है असख्य, उम्मीदों, अरमानों, सपनों, ख़्वाहिशों और आशाओं से।

हर उगते सूरज के साथ नई उम्मीद का उदय होना तथा हर अस्त होते सूर्य के साथ नए अरमानों का उद्भव होना एक ऐसी प्रेम कहानी जो चलती है अल्फ़ाजों, जज्बातों और अहसासों की अंगड़ाई से। शुद्ध देशी इकतरफ प्यार की दास्तान, जिसमें ख़्वाहिश भी इकतरफी है, आँसू भी इकतरफे है और दर्द भी इकतरफा है। यह कहानी है मोहल्ले से प्रेम की, यह कहानी है रेगिस्तानी रांझे की, यह कहानी है इक दोस्ताने की।

शहर की टेढ़ी-मेढ़ी गलियों में ख्वाहिश की खोज, ख्वाहिश के दीदार की जिद्द में सुबह हो या शाम, सर्दी हो-गर्मी या बरसात हो, बस गली या छत को आशियाना बनाना और उसी ख्वाहिश को पाने की तरकीबों से सजी यह कहानी किसी रांझणा से कम नही है।

चाहत का अथाह समंदर, जिसमें चल रही है ख्वाबों की कस्तियाँ जिसे चला रही हो अरमानों की पतवारें तथा इन्हीं ख्वाबों की कस्तियों को रास्ता दिखा रही हो ख्वाहिश को पाने की तरकीबों की हवा और एक मुसाफिर जिसकी मंज़िल है, उसकी ख्वाहिश जिसको शायद इस चाहत के सागर में उठने वाले तूफानों की जरा भी खबर नही है, लेकिन जिद्द से परिपूर्ण वह मुसाफिर चल पड़ता है, बिना कुछ सोचे समझे भूल-भुलैया सम प्रेमी रूपी रास्ते पर और उसकी कहानी इसी रेगिस्तान की मिट्टी में मिलकर रह जाती है। सबसे महत्वपूर्ण व खास इस कहानीं में गूंज रहा है इक सवाल कि आखिर यह आत्महत्या क्यों?……… जबकि शांति तथो समझदारीे से हर एक मुसिबत तथा परिस्थिति का निवारण संभंव है, फिर यह पागलपन क्यों? अंत में सिर्फ पछतावे के अलावा कुछ नहीं रहता फिर यह नादानी क्यों?

क्यों………..? क्यों………….? क्यों………….?

 

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Additional information

Weight 0.4 kg
Dimensions 5.5 × 1 × 8.5 in

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