अभी अभी

199.0

प्रत्येक रचना अच्छी-बुरी परिस्थितियों व उनपर समाज व देश पर पड़ते प्रभाव पर मनन करने से ह्रदय से कविता के रूप में स्वयं व प्रत्येक रचना के लिए अभी अभी ही उद्घाटित होती है। अगर हाथ में कलम तथा सामने कागज का टुकड़ा हो तो भाव लिपिबद्ध हो जाता है वरना मन में चलते अनेकानेक आते-जाते विचारों की तरह विलीन हो जाता है | पता नहीं कौन सा भाव, कौन सा पल उत्तम रचना का जन्मदाता हो | किस क्षण सरस्वती माता की कृपा दृष्टि बरसे और अभी अभी उत्पन्न भाव कालजयी बन जाये इसके लिए कवि को तैयार रहना पड़ता है । पहला कविता संग्रह “बयार के रंग हज़ार” की सभी रचनाएँ इसी प्रकार उद्भूत हुई परंतु किसी कारण उसे अभी अभी का नाम नहीं मिल पाया | इसलिए मेरी इस द्वितीय कविता संग्रह का नाम मैंने अपनी प्रथम कविता के पूर्व ही सोच रखा था | अभी अभी के मौन जाप और प्रकृति के आकर्षण नियम के अनुसार इस शीर्षक से विरह का भाव लिए इस पुस्तक की प्रथम कविता का उदय हुआ :-

 

“बरसों बरस तुम्हें देखने को तरसे हैं मेरे जुड़वा नैन,

बाहों में इतनी देर रहो कि पड़ जाये इस दिल को चैन,

इतना तो हक बनता ही है, अब कितना मुझे सताओगे,

अभी अभी तो आए हो, क्या इतनी जल्दी जाओगे ?

 

  • PublisherNovel Nuggets Publishers; First Edition (11 August 2023)
  • Language ‏ : ‎ Hindi
  • Paperback ‏ : ‎ 124 pages
  • ISBN-13 ‏ : ‎ 978-9395312165

 

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Description

प्रत्येक रचना अच्छी-बुरी परिस्थितियों व उनपर समाज व देश पर पड़ते प्रभाव पर मनन करने से ह्रदय से कविता के रूप में स्वयं व प्रत्येक रचना के लिए अभी अभी ही उद्घाटित होती है। अगर हाथ में कलम तथा सामने कागज का टुकड़ा हो तो भाव लिपिबद्ध हो जाता है वरना मन में चलते अनेकानेक आते-जाते विचारों की तरह विलीन हो जाता है | पता नहीं कौन सा भाव, कौन सा पल उत्तम रचना का जन्मदाता हो | किस क्षण सरस्वती माता की कृपा दृष्टि बरसे और अभी अभी उत्पन्न भाव कालजयी बन जाये इसके लिए कवि को तैयार रहना पड़ता है । पहला कविता संग्रह “बयार के रंग हज़ार” की सभी रचनाएँ इसी प्रकार उद्भूत हुई परंतु किसी कारण उसे अभी अभी का नाम नहीं मिल पाया | इसलिए मेरी इस द्वितीय कविता संग्रह का नाम मैंने अपनी प्रथम कविता के पूर्व ही सोच रखा था | अभी अभी के मौन जाप और प्रकृति के आकर्षण नियम के अनुसार इस शीर्षक से विरह का भाव लिए इस पुस्तक की प्रथम कविता का उदय हुआ :-

 

“बरसों बरस तुम्हें देखने को तरसे हैं मेरे जुड़वा नैन,

बाहों में इतनी देर रहो कि पड़ जाये इस दिल को चैन,

इतना तो हक बनता ही है, अब कितना मुझे सताओगे,

अभी अभी तो आए हो, क्या इतनी जल्दी जाओगे ?

 

  • PublisherNovel Nuggets Publishers; First Edition (11 August 2023)
  • Language ‏ : ‎ Hindi
  • Paperback ‏ : ‎ 124 pages
  • ISBN-13 ‏ : ‎ 978-9395312165

Additional information

Weight 0.2 kg
Dimensions 6 × 1 × 7 in

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